फरीद की कहानी आसीन की जुबानीदूसरा दशक परियोजना लक्ष्मणगढ़ के वर्तमान कार्यक्षेत्र के गांवों में से एक गांव बड़ौली, जिसकी विकासखण्ड से दूरी छः किलोमीटर है। मुख्य सड़क से चार किलोमीटर अन्दर की ओर स्थित है। करीब 13 वर्ष का फरीद बहुत सुन्दर, चंचल, रंग गोरा, कजरारी आंखों वाला है। इसके वालिद का नाम आस मौहम्मद और इसकी वालिदा का नाम रहिसन है। फरीद के दो भाई व तीन बहनें हैं। यह किशोर अपने परिवार में सबसे छोटा है। इसका बड़ा भाई बी.ए.,बी.एड. है, छोटा भाई बी.ए. कर रहा है। बड़ी बहिन की शादी हो गई है, जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है। फरीद ने कक्षा पांचवीं में पढ़ाई छोड़ दी। माता-पिता ने पढ़ने जाने के लिए खूब समझाया पर इसका स्कूल जाने व पढ़ने में मजा नहीं आता था। गांव में घुम्मकड बच्चों की संगत में रहकर सिगरेट, बीड़ी पीना और गुटके खाना आदि सीख गया। परिवार वालों ने हाथ खर्ची नहीं देने पर घर में चोरी करता, अनाज बेचता, आस-पड़ौस से प्लास्टिक, लोहे का सामान चोरी करता और लक्ष्मणगढ़ आकर कबाड़ की दुकान पर बेच आता। इन हरकतों से इसके परिवार वाले बहुत ज्यादा दुःखी व परेशान रहने लगे। दूसरा दशक के कार्मिकों ने गांव का सर्वे किया तो फरीद की शैक्षिक स्थिति व इसके व्यवहार के बारे में पता लगा। फरीद की लगातार पढ़ाई जारी रहे इसके लिए दूसरा दशक में आयोजित होने वाले आवासीय शिविर के बारे में उसके अभिभावकों को जानकारी दी गई।सभी परिवार वाले इसे आवासीय शिविर में भेजने के लिए सहमत थे, लेकिन फरीद की मां इस डर व शंका के साथ कहना था कि ’’ई चोर है भईई तहारी ऑपस (ऑफिस) का सामान बैच देगो, तहारी जेबन मै सै पइसान नै निकाड़ लेगो, भई हमसो तहारो फैसलो नाय होयगो, याय तम यहीं रहणदयो’’। (ये चोर है भाई, तुम्हारे आफिस का सामान बेच देगा। तुम्हारी जेब से पैसे निकाल लेगा। भाई हमसे तुम्हारा यह फैसला नही होगा। इसे तुम यही रहने दो।)साथियों ने उसकी मां के डर और शंकाओं पर बात की और श्री कमलेश जी (का.परियोजना निदेशक) से टेलीफोनिक बात भी करवाई। अगले दिन समुदाय बैठक में कमलेश जी ने उसकी से व्यक्तिगत मिलकर मां को शिविर में भेजने के लिए प्रेरित किया। अंत में मां फरीद को आवासीय शिविर में भेजने के लिए राजी हो गयी।शिविर को शुरू हुए चार दिन ही हुए थे फरीद रात को करीब एक बजे शिविर से भागने लगा, जाग होने पर प्रशिक्षकों ने उसे पकड़ लिया, और सुबह इसे प्यार व दुलार के साथ समझाया गया। इसके बाद लगातार इस पर नजर रखी गई। इस शिविर में कुछ अन्य किशोर भी थे जो फरीद की तरह नशा करने के आदी थे। इनके साथ इसकी दोस्ती हो गयी। सामूहिक सत्र में टेबलेट व लैपटॉप की सहायता से सब किशोरों को नशे से होने वाले नुकसानों के बारे में बताते थे। अलग से इन किशोरों के साथ अलग बैठाकर रोज नशे पर कुछ देर बात की जाती थी। धीरे-धीरे समूह नशा करना कम कर दिया और शिविर में निरन्तर जुड़ाव बना। शिविर के एक माह के अन्त तक फरीद ने नशा करना पूर्ण रूप से छोड़ दिया। और पढ़ाई में मन लगाने लगा। शिविर से इसने कक्षा पांचवीं का स्तर प्राप्त किया। इसके बाद फरीद बड़ौली में संचालित इखवेलो केन्द्र पर का नियमित सहभागी बना।इखवेलो पर उपलब्ध टेबलेट की सहायता से यह इमरान खान के विभिन्न शैक्षिक एप्स एवं प्रथम के एप्स पर कार्य कर है। यू-ट्यूब पर शैक्षिक वीडियो देखना एवं शैक्षिक गेम खेलना इसे बहुत अच्छा लगता है। इखवेलो केन्द्र पर समुदाय के अन्य किशोर-किशोरियों को जोड़ने में भी प्रभारी की मदद करता है। वर्तमान में फरीद एक निजी विद्यालय की कक्षा 7 में पढ़ रहा है। रोचक बात यह कि फरीद की इच्छा है कि आगे पढ़कर पुलिस सेवा में जाऊं।आसीन खांन
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