Har Prakar Ki Samsya Ka Samadhan: Shivji – Doosra Dashak
हर प्रकार की समस्या का समाधानः शिवजी पीसांगन विकासखंड जीवन में कुछ करने की चाह हो और मेहनत करने की तैयारी हो तो मंजिल मिल ही जाती है। बस दूसरा दशक जैसा कोई मददगार हाथ सही रास्ते पर ले चले तो कोई भी अपना सपना पूरा कर ही लेता है । ऐसा ही हुआ एक खेतिहर मजदूर परिवार में जन्में पीसांगन के शिवजी के साथ । आज वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है । भले ही उसके पास तकनीकी शिक्षा की कोई डिग्री नहीं हैं, परंतु कई तकनीकी काम वह अपने मजबूत आत्मविश्वास की बदौलत आसानी से कर रहा है । आठवीं कक्षा के बाद तो उसे खेत पर काम और दूसरी मजदूरी करते हुए ही पढ़ाई जारी रखनी पड़ी । घर में तो चिमनी की रोशनी होती थी तो उसे सौर ऊर्जा से चलने वाली बैट्रियों की रोशनी में पढ़ने के लिए पड़ौसियों के घर जाना पड़ता था । ऐसे हालात में भी उसने बारहवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और अपनी क्लास में तीसरी रैंक हासिल की । पढ़ाई के दौरान उसने पुष्कर में बेलदारी का काम भी किया । इसी बीच वह पड़ौसी राज्य गुजरात में अहमदाबाद के निकट साप्पोद गांव के औद्योगिक क्षेत्र में काम करने चला गया। मगर थोड़े ही समय बाद मां के बीमार होने पर काम छोड़ कर वापस घर लौट आया । यहां फिर वही पुष्कर में मजदूरी । इस दौरान और भी बहुत से काम किए, जैसे होटल में वेटर, बिजली फिटिंग, गुलकंद बनाना आदि। एक चीज साफ थी कि उसमें मेहनत के साथ नए-नए काम सीखने की ललक थी । तभी उसकी जिंदगी में एक मोड आया जब पीसांगन में उसकी स्कूल-राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय -में दूसरा दशक की तरफ से विज्ञान मेला लगाया गया । उसमें उसे बड़ा मजा आया । मगर दूसरा दशक से उसका सीधा परिचय इस मेले के कुछ महीने बाद हुआ । जब उसकी एक महिला कार्यकर्त्ता ने शिवजी को इस परियोजना की जानकारी देते हुए वहां वैकेंसी के बारे में बताया तो वह अपने साथी के साथ इंटरव्यू देने चला गया । उसने बारहवीं कक्षा ही पास की हुई थी और वैंकेसी के लिए स्नातक योग्यता की जरूरत थी । परियोजना निदेशक ने उसे हतोत्साहित नहीं किया । प्यार से बातचीत की और कहा अभी पढ़ाई जारी रखो, फिर आकर मिलना । कुछ समय बाद उसको ऑफिस में बुलाया और इस तरह अक्टूबर, 2010 में दूसरा दशक में फील्ड ऑर्गेनाइजर पद पर काम शुरु किया । शुरू में तो वहां उसका मन ही नहीं लगा क्योंकि उसकी आदत तो भारी वजन उठाने की मजदूरी करने की रही थी । यहां तो गांव-गांव घूमकर महिलाओं, किशोर-किशोरियों तथा जन प्रतिनिधियों से संपर्क करने का काम था जो उसके लिए सर्वथा नया और भटकने जैसा था । समझ में नहीं आता था कि इन गांवो में क्या सीखने को मिलेगा ? मन में आने लगा कि ये तो कोई काम ही नहीं है, छोड़ों इसे । परियोजना निदेशक ने शिवजी को बुलाया उसे समझाया और कहा कि दो वर्ष काम कर लो बहुत कुछ सीख जाओगे। शुरु में उसे लोगों से संपर्क करने में झिझक होती थी । दूसरा दशक में काम करते हुए धीरे-धीरे बहुत सी बातों की समझ बनने लगी । इससे आत्मबल बढ़ा और उसके मन में यह भाव जागने लगा कि असंभव लगने वाला काम भी संभव हो सकता है । फिर शिवजी को दूसरा दशक के अनेक प्रशिक्षणों में भाग लेने का अवसर मिला, जैसे एसएमसी प्रशिक्षण, कार्मिक प्रशिक्षण, इखवेलो प्रभारी प्रशिक्षण, सॉफ्टवेयर का प्रशिक्षण, पंचायती राज व सामाजिक सर्वेक्षण, विज्ञान की कार्यशाला आदि । इनमें उसे ऐसी सीख मिली कि बदलाव की शुरुआत खुद से करनी होगी। जब यह पाया कि योजनाओं का लाभ वंचितों को नहीं मिलता बल्कि उनका शोषण होता है, तो मन में ठाना कि वंचितों को उनका हक दिलाने के लिए काम करना है । सभी काम करते हुए शीघ्र ही सूचना का अधिकार, जन सुनवाई अधिकार, लोक गारंटी अधिनियम, रोजगार गारंटी अधिकार, शिक्षा का अधिकार, आदि सब उसकी ‘टिप्स’ पर आ गए। सरकारी योजनाओं व सुविधाओं को धरातल तक पहुंचाते हुए शिवजी ने लाखों रुपयांे के भुगतान करवाए हैं । सरकारी विभाग भी डेटा व तकनीकी सहयोग के लिए शिवजी से सहयोग लेते है व पूरा विश्वास करते है। गांव के लोग तो शिवजी को हर प्रकार की समस्या का समाधान करने वाला मानते है। दूसरा दशक के इखवेलो (सतत् शिक्षा केन्द्र) व ओपन स्कूल के आवासीय शिविरों में कम्प्यूटर व डिजिटल शिक्षण व परीक्षा तैयारी का कार्य शिवजी बिना रात दिन देखे करते है। और राहत कार्य हर तरह की उसमें बिना सर्दी, गर्मी, बरसात देखे शिवजी हमेशा तैयार। अभी COVID-19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान संस्था की ओर से  प्रशासन के साथ मिलकर खूब कार्य किया।
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