मुत्युभोज मुक्त मेरा गांव-मानसिंहयह वही मानसिंह है जो हर वक्त चुप्पी साधे रहता था। पढ़ाई और साफ-सफाई से कोई लेना-देना नहीं। सारा दिन जंगल में गाय-भैंस चराते, कंची खेलते हुए मौज-मस्ती में ही गुजार देता। हमेशा कमबोलने वाले, शर्मिले स्वभाव का नौजवान मानसिंह आज खुलकर अपने मन की बातें आसानी से कह पाता है। छोटे से गांव रजवास के रहने वाला यह किशोर सन् में दूसरा दशक द्वारा आयोजित चार माही आवासीय शिविर में प्रशिक्षित हुआ। इसके बाद समय-समय पर अनेक मुद्दों पर 6-8 प्रशिक्षणों में शामिल हुआ । युवामंच और युवा शक्ति संगठनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई । मानसिंह की सोच-विचार में बदलाव होते गए ।मानसिंह के गांव में अधिकतर लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर तो थी ही, रही सही कसर मृत्युभोज, शादी ब्याह जन्मोत्सव में होने वाली फिजूलखर्ची ने गांव के लोगों को ऊपर उठने का मौका ही नही दिया। कर्ज के बोझ में दबे रहने के कारण परिवार का पालन-पोषण मुश्किल हो रहा था। इन हालातों को देखकर बहुत चिन्तित रहने लगा। हर वक्त यही सोचता कि कैसे इसमें सुधार किया जाए।अपने जैसे और युवाओं को युवामंच से जोडकर इस समस्या के समाधान के लिए बातचीत की। अपनी टीम के साथ मिलकर मृत्युभोज, जन्मोत्सव आदि में होने वाली फिजूलखर्ची को बंद करवाने के लिए गांव के युवाओं, बड़े बुजुर्गों से बार-बार संपर्क और बैठकें की तो सफलता मिलने लगी। मानसिंह का हौंसला बढ़ता गया। इन कार्यों से मानसिंह सीधे लोगों के दिल और दिमाग में बस गया। प्रयास और बढते गए। लगातार कोशिश करते रहने से आज पूरे गांव में मृत्युभोज बंद कर दिया गया है। शादी व जन्मोत्सव कार्यक्रमों में होने वाली फिजूल खर्ची भी बंद हो गई। अब पूरे गांव में उसकी बात सभी बड़े ध्यान से सुनते हैं ।इसी के साथ शिक्षा से वंचित किशोर-किशोरियों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोडने का कार्य किया है तथा अपने-आपको इखवेलो सहायक के रुप में स्थापित किया है। गांव के लोग अब गुरुजी कहकर भी पुकारने लगे है।मानसिंह का सपना है कि अन्य गांवो के युवाओं के सहयोग से उन गांवो में भी इस समस्या को मिटाना है। परिवार में बडा व समझदार होने के कारण मेहनत मजदूरी करके घरवालों की आर्थिक रुप से मदद करने लगा।
Categories Our Stories