सामाजिक कुरीतियाँ एवं गरीबी (सुरेश,बस्सी)दुबले पतले, गेहुँए रंग के साधारण व्यक्तित्व वाले सुरेश बस्सी की पहाडियों के बीच बसे बैनाडा गाँव से है। पिताजी जयपुर में प्राईवेट नौकरी करते है, माँ घरेलू कार्य के साथ-साथ मनरेगा में मजदूरी करती है । कक्षा 10 में पढने वाला सुरेश खुद को हीन समझता था क्योकि वह एस.सी समुदाय से है। 2007 में सुरेश दूसरा दशक द्वारा आयोजित जीवन कौशल शिक्षा प्रशिक्षण में मौजमस्ती के उद्देश्य से शामिल हुआ। यहां उसे सवाल उठाने व मन की बात कहने का मंच मिला। यहॉ कोई भेदभाव नहीं होता देख बहुत खुश हुआ। नई-नई जानकारियां प्राप्त कीं, तो उसे लगा कि मैं और मेरा परिवार क्यों पिछडा है। उसने स्वयं व अपने परिवार में बदलाव करने का सोचा। स्वयं व परिवार के लोगों का स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान रखने लगा। अब परिवार वाले भी उसकी कही हुई बातों से प्रभावित हुए और स्वच्छता का ख्याल रखने लगे।दूसरा दशक के सहयोग व युवामंच के प्रयासों से गाँव में केन्द्र सरकार द्वारा संचालित सतत् शिक्षा केन्द्र जो लम्बे समय से बन्द था, पुनः शुरु करवाया तथा इसमें स्वयं भी समय देने लगा। ऐसा करने से इसका आत्मविश्वास बढा। आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के कारण उसने पढाई छोडने का मन बना लिया। सुरेश ने अपनी मन की बात दूसरा दशक, बस्सी के साथियों को बताई । साथियों ने हौसला बंधाते हुए समझाया कि कडी मेहनत करके परिवार का सहारा बनना है। संघर्ष करने से ही सफलता मिलती है। अतः पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए। सुरेश युवामंच तथा ब्लॉक स्तरीय संगठन युवा शक्ति संगठन में सक्रियता से लगभग 9 वर्षों तक जुड़ रहा है । समय-समय पर अनेक विषयों पर हुए प्रशिक्षणों में सुरेश ने मन लगाकर भाग लिया। सुरेश ने छोटा-मोटा काम करते हुए बी.कॉम. व एम.कॉम. तक की पढाई की। अपनी बहनों को परिवार व समाज के दबाव के बावजूद पढाने का प्रयत्न करता रहा। इसके साथ गाँव व रिश्तेदारों के निरक्षर, ड्रॉप आउट किशोर-किशोरियों को पढने के लिए दूसरा दशक के शिविरों से जोड़ता रहा।सुरेश को लगता था कि गरीबी का एक मुख्य कारण समाज की कुरीतियॉ है, वह इनको रोकना चाहता था। युवामंच के साथियों ललित, कैलाश, कालूराम के साथ मृत्युभोज में भाग न लेकर विरोध करने का निर्णय लिया। समुदाय के लोगों को इसके बारे में जागरुक करने का कार्य किया। ऐसा करने से गाँव व समाज में अलग से पहचान बनने लगी। मंच के साथियों के इस कदम का प्रभाव गांव के अन्य परिवारों पर भी पड़ा ।सुरेश की रेल्वे में सर्विस लग गई और समाज के लोगों द्वारा दहेज और गाड़ी के साथ कई रिश्ते आने लगे। लेकिन सुरेश बिना दहेज व नकदी के शादी करना चाहता था, ताकि समाज इस फिजूलखर्ची से बचे व कर्जा लेकर रीति-रिवाज न निभाए । अतः समाज के लोगों को संदेश देने के लिए 2017 में सम्मेलन में विवाह किया। सुरेश ने सगाई पर सगुन के तौर पर एक रुपया लिया। लग्न व टीके में भी सगुन के तौर पर एक रुपया लिया। सम्मेलन में बिना किसी घोडी, बाजे के, बिना दहेज लिये शादी की। समाज के अन्य युवाओं के लिए एक उदाहरण बना है ।वर्तमान में सुरेश अपने माता-पिता, पत्नी व अपने पुत्र के साथ दिल्ली में रह रहा हैं। दिल्ली में रहते हुए भी दूसरा दशक से जुडा हुआ है। होली, दीपावली, नववर्ष पर सहभागियों व दूसरा दशक टीम के संपर्क में रहता है । अपनी कामयाबी के पीछे दूसरा दशक द्वारा दिए गए माहौल व मार्गदर्शन को महत्वपूर्ण मानतता है। जिससे वह हिन भावना से उबर पाया।सुरेश व उसकी पत्नी ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान जरुरतमंद व बेघर लोगों के लिए रोजाना 50 पैकिट भोजन के बनाकर वितरण करने का पुनीत कार्य किया। इन्हे राष्ट्रीय अवार्ड के लिए नामांकित किया गया है। दूसरा दशक के संविधानिक मूल्यों को इन्होने अपने व्यवहार का हिस्सा बनाया है।
Categories Our Stories