शुरूआत खुद से ही(नौमान, लक्ष्मणगढ)पहली बार साल 2007 में नौमान सात दिवसीय जीवन कौशल शिक्षा प्रशिक्षण के माध्यम से दूसरा दशक से जुड़ा था । परियोजना में सहभागी का सफर तय करते हुए वह इखवेलो प्रभारी के पद तक पहुंचा है । उसमें दूसरा दशक के मूल्यों जैसे ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, जैंडर संवेदनशीलता और पारदर्शिता आदि की झलक साफ देखी जा सकती है । वह बताता है कि उसमें ये बदलाव दूसरा दशक से जुड़ने के बाद ही आया ।नौमान खान में अभिव्यक्ति का कौशल बहुत मजबूत है । चाहे युवामंच हो या ऑफिस की मिटिंग, सही बात सही समय पर कहने में नौमान कोई झिझक नहीं होती, क्योंकि उसका इरादा नेक होता है। बड़े से बडे मंच पर वह अपनी बात निर्भीक होकर रखता है । गांव वालों की हर तरह की समस्याओं को हल करवाने के लिए सदैव तत्पर रहता है । चाहे किसी को बैंक में खाता खुलवाना हो, चाहे आधार नामांकन करवाना हो, भामाशाह कार्ड बनवाना हो या विभिन्न प्रकार की पेंशन तथा सामाजिक सरोकार की योजनाओं का लाभ दिलवाना हो वह लोगों की मदद के लिए हर वक्त तैयार रहता है।एक बार उसे पता चला कि एक ई-मित्र संचालक निर्धारित शुल्क से अधिक राशि वसूल करता है तो नौमान ने दूसरा दशक के एक दूसरे सहयोगी लोकेश कुमार अवस्थी के साथ मिलकर राजस्थान संपर्क पोर्टल पर उसकी शिकायत की । शिकायत के 15 दिन के अंदर उस ई-मित्र संचालक की आई डी ब्लॉक कर दी गई । इस पर संचालक ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए भरोसा दिलाया कि भविष्य में वह निर्धारित शुल्क ही वसूल करेगा । इस पर दोनों पक्षों की सहमति बनी और पटवारी द्वारा जांच रिपोर्ट तैयार कर प्रशासनिक अधिकारी को भेजने के बाद ई-मित्र की आई डी फिर चालू हुई ।हाल ही में नौमान ने खुद की शादी में केवल पांच लोगों की बारात ले जाकर अपने समाज में अभिनव उदाहरण पेश किया । इस प्रकार के उदाहरण पेश करने के लिए परिवार जनों के साथ बहुत समझाइश करनी पड़ी लेकिन श्री नौमान का कहना है कि शुरूआत खुद से ही करनी पड़ती है।वर्तमान में कोरोना महामारी के समय राहत कार्यो में प्रशासन का सहयोग करना, सोशल मीडिया के माध्यम से अपने ग्रामीण क्षेत्र में जन जागरूकता का कार्य करना, गांवों को सेनेटाइज करवाने के लिए जन प्रतिनिधियों से सम्पर्क कर करवाना आदि कार्य कर रहा है।नौमान पत्रकारिता का कोर्स करना चाहता है । अपने हम उम्र साथियों के लिए उसका संदेश है कि समाज में व्याप्त बुराइयों जैसे जुआ, मृत्युभोजए दहेज और नशा आदि से बचें और अपने समुदायों को भी इनके लिए जागरूक करें ।
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