सोमवती सपेरा की दास्तानसोमवती, लक्ष्मणगढसपेरावास में रहने वाली सोमवती की दास्तान तो छोटी सी, मगर उसमें सांप की चाल जैसी टेढ़ी मेढ़ी घुमावदार तकलीफों की दास्तान है। उसका परिवार भीख मांगकर अपनी गुजर बसर करता है। घर के नाम पर तिरपाल का बना एक तम्बू जिसमे वह अपने वृद्ध दादा और दादी के साथ रहती है । खाने को कुछ नहीं होता, तो उसे अक्सर भूखे ही स्कूल जाना होता है जहां मिलने वाले पोषाहार से पेट भरता है । उसके साथ पढ़ने वाले बच्चे उसके लिए अपने घर से कुछ खाने को ले आते हैं ।सोमवती जब महज दो वर्ष की थी उसके पिता का साया उसके सिर से उठ गया । पिता की मृत्यु के कुछ समय बाद उनकी मां दूसरे गाव में अन्य किसी व्यक्ति के साथ नाते चली गयी । नए घर में उसके साथ सौतेला व्यवहार होने का पता चला तो उसकी दादी उसे अपने बेटे की आखिरी निशानी मानकर अपने साथ ले आई ।लक्ष्मणगढ़ के सपेराबास में दूसरा दशक के सामुदायिक सर्वेक्षण से निकले आंकड़े से सोमवती की हालत का पता चला तो उसे अप्रेल, 2018 में आयोजित किशोरी आवासीय शिविर में शामिल किया गया । दूसरा दशक का यह शिविर उसके लिए वरदान साबित हुआ । शिविर में सोमवती ने खूब मेहनत की और मन लगाकर पढ़ाई की जिससे चार माही आवासीय शिविर में उसने पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई की और परीक्षा पास की । इसके बाद दूसरा दशक के साथियों ने विशेष पहल करते हुए सोमवती को लक्ष्मणगढ़ ब्लॉक की प्रमुख स्कूल स्वामी विवेकानंद राजकीय मॉडल विद्यालय, हरसाना में कक्षा छह में प्रवेश दिला दिया । सोमवती को आगे पढ़ने और बढ़ने की राह मिल गयी । वह बहुत खुश है । स्कूल में वह अच्छी धावक होने के साथ-साथ वॉलीबाल की बढ़िया खिलाड़ी बन कर उभरी है।उसने दूसरा दशक के ‘जीवन कौशल प्रशिक्षणों’ में भी हिस्सा लिया है और किशोरी मंच की सक्रिय सदस्य बन गयी है ।अपनी खुद की हिम्मत और दूसरा दशक की मदद ने सोमवती की दुख भरी कहानी में सुखद मोड आ गया है । वह न केवल अपना नाम करना चाहती है बल्कि सपेरा समुदाय का नाम भी रोशन करने की अभिलाशा अपने मन में संजोए हुए है । अभी वह सतत् पढाई जारी रखे हुए है।
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